दर्शन

डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर के शब्दों में, कई हज़ार वर्षों से भारतीय समाज जाति व्यवस्था के स्पष्ट प्रकटीकरण के रूप में एक गहरी जड़वत असमानता के अधीन है। आगे, जाति की रूपरेखा के अंदर लिंग, जातीयता, धर्म और अन्य सामाजिक-आर्थिक कमजोरियों के आधार पर असमानता की स्थिरता ने दमन के आख्यान को अत्यधिक जटिल बना दिया है। बढ़ती सामाजिक-आर्थिक असमानता, समान अवसर और प्रबल वर्ग द्वारा संसाधनों के उपयोग से वंचित की स्थति, अधिकांश आबादी को उनके समानता, स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार से मना करते है। सरंचनात्मक बहिष्कार भी महत्वाकांक्षी वकीलों के क्षमता निर्माण की प्रक्रिया में रुकावट पैदा करता है, जिन्हे सरंक्षण और सामाजिक न्याय वकालत की प्रैक्टिस के लिए जरूरी संसाधनों से वंचित रखा जाता है।

यह सामाजिक न्याय वकीलों के लिए कई प्रकार से नई चुनौतियाँ खड़ी करता है, जैसे: सामाजिक न्याय के दृष्टिकोण से कानूनी माहौल में बदलाव के लिए विश्लेषण और उस तक पहुँचना; इस बदलाव के प्रति उचित कानूनी जवाबी प्रक्रिया के माध्यम से जवाब देना; और विशेष रूप से निचली अदालत की प्रक्रिया के माध्यम से जवाबदेही अधिकारियों के लिए नए रास्ते खोजना।

इस प्रकार, सामाजिक न्याय वकालत आवश्यक रूप से एक सक्रिय वकालत है, जो कि आधारिक संबंधों का स्वरूप बदलती है और इस तरह से कानूनी प्रक्रिया द्वारा कमजोर वर्ग के अधिकारों और उनके हक के रास्ते को सरल करती है। विशिष्ट मामलों में व्यक्तियों के संरक्षण के लिए पारंपरिक कानूनी सहायता निर्देशित की जाती है। कमजोर वर्ग की रक्षा करने की धारणा है लेकिन गरीबों के लिए कानून तैयार करने और उनको प्रभावी तरह से लागू करने के लिए कोई भी प्रयास नहीं किया गया है। इसके विपरीत, सामाजिक न्याय वकालत, पारंपरिक कानूनी सहायता से कई गुना आगे जाती है तथा कमजोर वर्ग के सशक्तिकरण के लिए एक प्रभावी संसाधन बनने की कोशिश करती है। यह कानून द्वारा सामाजिक बदलाव लाने के लिए प्रयत्न करती है।

 

आखिरकार, यह यथापूर्व स्थिति को बदलने के लिए एक वकील को कुछ जरूरी सवालों पर सोच खड़ी करने और आगे काम करने की कोशिश करती है: श्रेणीबद्ध असमानता के घेरे में कैसे कोई व्यक्ति सामाजिक न्याय को इस कमजोर अंतर को बारीकी से समझ सकता है? समाज में सत्ता कैसे और कहाँ पर केन्द्रित है, किस प्रकार बांटी जाती है और कैसे बनाए रखी जाती है? कैसे उच्च वर्ग को संसाधन मिल जाते है और कमजोर वर्ग को अवसर और स्वामित्व के समान अधिकार से वंचित रखा जाता है? किस प्रकार से इन अधिकारों के अंतर को चुनौती देने के लिए कानून को काम में लिया जा सकता है जिसके चलते अन्याय और पक्षपात पैदा होता है?

 

सामाजिक न्याय वकील, जो कानून और सामाजिक बदलाव के बीच में खड़े है, को कई जरूरी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। एक और जहाँ वे भारत जैसे एक जड़वत विषम समाज में कानून की मदद से सरंचनात्मक असमानता से लड़ रहे होते है, वहीं दूसरी तरफ यही असमानता एक सामाजिक न्याय वकील के लिए जानकारी और सूचनाओं को रोककर रुकावट का एक माध्यम बनती है। हालांकि, तेजी से बढ़ते डिजिटल और सोशल मीडिया से जानकारी और सूचनाओं को शेयर करने के लिए एक लोकतंत्रात्मक माहौल अब बन रहा है। इसने सीखने के सिस्टम को तैयार करने के लिए कई अवसर दिये है जो मुश्किल और सीमित परिस्थितियों में काम करने वाले सामाजिक न्याय वकीलों द्वारा सामना करने वाली व्यावहारिक चुनौतियों और आवश्यकताओं के प्रति जवाबदेही होते है।